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Monday, December 23, 2013

खतरनाक स्तर पर पहुंचता प्रदूषण

खतरनाक स्तर पर पहुंचता प्रदूषण



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खतरनाक स्तर पर पहुंचता प्रदूषण
खतरनाक स्तर पर पहुंचता प्रदूषण (फाइल फोटो)
वैश्विक स्तर पर पर्यावरण प्रदूषण से निपटने की ठोस रणनीति न होने का ही परिणाम है कि हर वर्ष लाखों लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं.
हजारों लोग काल के शिकार बन रहे हैं. पिछले दिनों एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स जर्नल के एक शोध से खुलासा हुआ है कि दुनियाभर में प्रदूषण से तकरीबन छब्बीस लाख लोगों की मौत होती है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैरोलीना के विद्वान जैसन वेस्ट का अध्ययन बताता है कि इनमें से ज्यादतर मौतें दक्षिण और पूर्व एशिया में हुई हैं. आंकड़े बताते हैं कि हर साल मानवजनित वायु प्रदूषण से तकरीबन 4.7 लाख और औद्योगिक इकाइयों से उत्पन्न प्रदूषण से 21 लाख लोग दम तोड़ते हैं. शोध में कहा गया है कि अगर इससे निपटने की तत्काल वैश्विक रणनीति तैयार नहीं हुई तो भविष्य में बड़ी वैश्विक जनसंख्या प्रदूषण की चपेट में होगी. वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर ने भी दूषित हवा को कैंसर का बड़ा कारण माना है जबकि अभी तक कैंसर के लिए तंबाकू और रेडिएशन को ही सर्वाधिक जिम्मेदार माना जाता रहा है.

शोध से यह भी खुलासा हुआ है कि भारत के विभिन्न शहर प्रदूषण की चपेट में हैं. उपग्रहों से लिए गए आंकड़ों के आधार पर तैयार रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के 189 शहरों में सर्वाधिक प्रदूषण स्तर भारतीय शहरों में पाया गया है.  2010 में आई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक कोलकाता और दिल्ली देश में सबसे प्रदूषित हवा वाले शहर हैं. आईसीएमआर के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2009 से 2011 के बीच फेफड़े के कैंसर के सबसे अधिक मामले दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में ही सामने आए हैं. सीएसई यानी सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट का आंकलन है कि देश में 2026 तक चौदह लाख लोग किसी न किसी तरह के कैंसर से पीड़ित होंगे.
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने सरकार को आगाह किया है कि वह प्रदूषण कम करने के लिए ठोस कदम उठाए. उन्होंने सुझाव दिया है कि हर शहर में वाहनों के लिए यूरो-4 नियम लागू करना चाहिए. लेकिन विडंबना है कि इसे लेकर सरकार अभी गंभीर नहीं दिख रही है. यह वैज्ञानिक तथ्य है कि जब भी वायुमंडल में गैसों का अनुपात संतुलित नहीं रह जाता है तब प्रदूषण की संभावना बढ़ जाती है. हाल के वर्षो में वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा घटी है और दूषित गैसों की मात्रा बढ़ी है. कार्बनडाई ऑक्साइड की मात्रा में तकरीबन 25 फीसद की वृद्धि हुई है. इसका मुख्य कारण बड़े कल-कारखानों और उद्योगधंधों में कोयले एवं खनिज तेल का उपयोग है. इनके जलने से सल्फरडाई ऑक्साइड निकलती है जो मानव जीवन के लिए बेहद खतरनाक है.

भारत समेत दुनिया में हर दिन करोड़ों मोटरवाहन सड़क पर चलते हैं. इनके धुएं के साथ सीसा, कार्बन मोनोक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड के कण निकलते हैं. ये दूषित कण मानव शरीर में कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं. कारखानों और विद्युत गृहों की चिमनियों तथा स्वचालित मोटरगाड़ियों में विभिन्न ईधनों का पूर्ण और अपूर्ण दहन भी प्रदुषण को बढ़ाता है. 1984 में भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक कारखाने से विषैली गैस के रिसाव से हजारों व्यक्ति मौत के मुंह में चले गए और हजारों लोग अपंगता का दंश झेल रहे हैं. इसी प्रकार 1986 में अविभाजित सोवियत संघ के चेरनोबिल परमाणु रिएक्टर में रिसाव होने से लाखों लोग प्रभावित हुए. इन घटनाओं के लिए वायु प्रदूषण ही जिम्मेदार है.

वायु प्रदूषण से न केवल मानव समाज को बल्कि प्रकृति को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है. जब भी वर्षा होती है तो वायुमंडल में मौजूद विषैले तत्व वर्षा जल के साथ मिलकर नदियों, तालाबों, जलाशयों और मिट्टी को प्रदूषित कर देते हैं. अम्लीय वर्षा का जलीय तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. नार्वे, स्वीडन, कनाडा और अमेरिका की महान झीलें अम्लीय वर्षा से प्रभावित हैं. अम्लीय वर्षा वनों को भी बड़े पैमाने पर नष्ट कर रही है. यूरोप महाद्वीप में अम्लीय वर्षा के कारण 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र वन नष्ट हो चुके हैं. ओजोन गैस की परत को, जो पृथ्वी के लिए एक रक्षाकवच का कार्य करती है, वायुमंडल की दूषित गैसों के कारण काफी नुकसान पहुंचा है. इससे सूर्य की खतरनाक पराबैगनी किरणों पृथ्वी पर पहुंचकर तापमान में वृद्धि कर रही हैं.

इससे न केवल कैसर जैसे रोगों में वृद्धि हो रही है बल्कि पेड़ों से कार्बनिक यौगिकों के उत्सर्जन में बढ़ोतरी हुई है. नए शोधों से यह भी जानकारी मिली है कि जो गर्भवती महिलाएं वायु प्रदूषित क्षेत्र में रहती है, उनसे जन्म लेने वाले शिुशु का वजन सामान्य शिशुओं की तुलना में कम होता है. यह खुलासा एनवायरमेंटल हेल्थ प्रॉस्पेक्टिव द्वारा नौ देशों में 30 लाख से ज्यादा नवजात शिशुओं पर अध्ययन से हुआ है. शोध के मुताबिक जन्म के समय कम वजन के शिशुओं को आगे चलकर स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इनमें मधुमेह और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है.

वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों पर भी पड़ रहा है. पिछले दिनों देश के 39 शहरों की 138 ऐतिहासिक स्मारकों पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव का अध्ययन किया गया. इसमें पाया गया कि शिमला, हसन, मंगलौर, मैसूर, कोट्टयम और मदुरै जैसे विरासती शहरों में पार्टिकुलेट मैटर पॉल्यूशन राष्ट्रीय मानक 60 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर से भी अधिक है. कुछ स्मारकों के निकट तो यह चार गुना से भी अधिक पाया गया. सर्वाधिक प्रदूषण स्तर दिल्ली के लालकिला के आसपास है. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि शहरों के स्मारकों के आसपास रासायनिक और धूल प्रदूषण की जानकारी के बाद भी उनके बचाव पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

ऐसा नहीं है कि प्रदूषण के इन दुष्प्रभावों से निपटने और उस पर रोकथाम के लिए कानून नहीं हैं. लेकिन सचाई यह है कि कानूनों का पालन नहीं हो रहा है. सरकार ने प्रदूषण में कमी लाने के उद्देश्य से तेरह बड़े शहरों समेत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में चार पहिया और दो पहिया वाहनों के लिए भारत स्टेज-चार और भारत स्टेज-तीन उत्सर्जन नियम 2010 लागू किए. प्रदूषण में कमी लाने के लिए परिष्कृत डीजल और गैसोलिन की आपूर्ति बढ़ाई गई. साथ ही कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस यानी सीएनजी के इस्तेमाल पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है. दिल्ली के बाद देश के अन्य बड़े शहर भी मेट्रो ट्रेन लाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. लेकिन प्रदूषण पर नियंत्रण तब लगेगा जब सरकार और आम लोग अपनी जिम्मेदारियों के प्रति संवेदनशील होंगे.


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